कुंठित मन और संकुचित जीवन
अस्त- व्यस्त सा है तन- मन
ना कोई सुनता व्यथा ह्र्दय की
बिखरा है जीवन में गम
जीवन में थी अद्भुत आभा
लीन थे हर पल हर दम हम
किसे पता लाएगी एक दिन
आंधी पतझड का मौसम
अपनों ने ही लूटा हमको
गैरों में था कहां ये दम
घर का भेदी लंका ढावे
सिद्ध हुई ये बात सनम
मधुर राग जिस कंठ से गाए
भूल चुके हम वो सरगम
वीणा सी थी झंकृत होती
सरस राग का था संगम
रोना- धोना बहुत हो चुका
बहुत मनाया था मातम
कमर कसी है अब तो हमनें
किस्मत पर छोडा जीवन
कश्ती है मझधार में अपनी
मांझी भी तो स्वयम है हम
बीच समंदर गहरा पानी
लहरों से है अब अनबन
लहरों से जा कह दे कोई
बंद करे अपना ये सितम
डटे रहेंगे सांस है जब तक
नहीं हटेंगे पीछे हम ।
अस्त- व्यस्त सा है तन- मन
ना कोई सुनता व्यथा ह्र्दय की
बिखरा है जीवन में गम
जीवन में थी अद्भुत आभा
लीन थे हर पल हर दम हम
किसे पता लाएगी एक दिन
आंधी पतझड का मौसम
अपनों ने ही लूटा हमको
गैरों में था कहां ये दम
घर का भेदी लंका ढावे
सिद्ध हुई ये बात सनम
मधुर राग जिस कंठ से गाए
भूल चुके हम वो सरगम
वीणा सी थी झंकृत होती
सरस राग का था संगम
रोना- धोना बहुत हो चुका
बहुत मनाया था मातम
कमर कसी है अब तो हमनें
किस्मत पर छोडा जीवन
कश्ती है मझधार में अपनी
मांझी भी तो स्वयम है हम
बीच समंदर गहरा पानी
लहरों से है अब अनबन
लहरों से जा कह दे कोई
बंद करे अपना ये सितम
डटे रहेंगे सांस है जब तक
नहीं हटेंगे पीछे हम ।